|| कलावार्ता ||

“हम लोगो ने इसे भक्ति भावना से बजाया किसी व्यवसायिक भावना से नहीं बजाया”
-पंडित हरिप्रसाद चौरसिया

संगीत केवल वह नहीं जो मंच पर श्रोता के सम्मुख प्रदर्शन कर तालियां और नाम बटोरता हैं ,संगीत वह हैं जो साधक और साध्य अर्थात भक्त और ईश्वर को एकाकार – एकरूप कर देता हैं। संगीत वह हैं जो आत्मा की गहराइयों को अंतरिक्ष की उचाईयों से जोड़ एकस्वरूप कर देता हैं|।संगीत वह हैं जो आहत को वश में कर अनाहत में विलीन कर देता हैं। स्वर और साधक की इसी एकात्मकता,इसी एकत्व का नाम संगीत हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत के उच्चतम कलाकरों में पंडित हरिप्रसाद चौरासियां जी का नाम अत्यंत आदर के साथ लिया जाता हैं। वीणासाधिका और वीणा वेणु आर्ट फाउंडेशन की डायरेक्टर होने के नाते मेरा उनसे मिलना ,उनसे बातचीत करना ,उनके बारे में जानना एक दैवीय अनुभूति रहा । जितना सच्चा उनका स्वर हैं उतना ही सच्चा और अद्भुत उनका व्यक्तिमत्व, उनसे बात करते समय एक विशिष्ट दैवीय अनुभूति होती हैं ,उनके संवादों में निरागसता और सहजता हैं और उनकी बातों में सच्चाई ,जो उनके वादन में भी दिखाई पड़ती हैं और शायद इसी सरलता – सहजता और निरागस भाव के कारण उनका बांसुरी वादन इतना अलौकिक हैं । प्रस्तुत हैं उसने मेरे वार्तालाप के कुछ अंश। डॉ राधिका वीणासाधिका

मैं -पंडित जी प्रणाम
पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जी – प्रणाम

मैं -पंडित जी आपका यह कृष्ण मंदिर यह वृन्दावन बहुत ही सुंदर हैं ,आपने कृष्ण के लिए बाँसुरी को चुना या बाँसुरी आयी तो संग – संग कृष्ण भी आये ?

पंडित हरिप्रसाद जी – कृष्ण तो सारे संसार के इष्ट देवता हैं ,मुझे कृष्ण से अत्यंत प्रेम हैं। उन्हें देखकर इस वाद्य को बजाने की इच्छा जागृत हुई , पर कृष्ण इस वाद्य पर कौनसे राग रागिनी बजाते थे ,कौनसी पध्दति में बजाते थे,कौनसी धुन बजाते थे ये तो हम लोग नहीं जानते लेकिन उनका इस वाद्य के प्रति अत्यंत प्रेम था और उसी प्रेम को देखते हुए मैंने सोचा कि इस वाद्य की कृष्ण के प्रति भक्ति के रूप में पूजा की जाये। इसी के माध्यम से कृष्ण की भक्ति की जाय और उन तक पंहुचा जाये ,तो जिसे मैं अपने जीवन का धर्म मानता हूँ उसकी शुरुवात हो जाएगी । इसी कारण मैंने इसे भक्ति के रूप में बजाया व्यवसायिकता के रूप में नहीं बजाया। मैं सोचता हूँ की बाँसुरी जैसा कोई दूसरा वाद्य नहीं ,ये पहला वाद्य हैं क्योकि इसके पहले कोई वाद्य शायद बना ही नहीं होगा। कृष्ण की बाँसुरी का जन्म गांव में हुआ किसी शहर में नहीं। भजन -पूजन में सर्वाधिक बाँसुरी ही का प्रयोग होता हैं आज कृष्ण के वरदान के कारण लोग इसे विदेशो में जाकर भी बजाते हैं ,वहां के लोग इसे सीखते हैं। मैं जब यहाँ बैठकर बांसुरी बजाता हूँ तो उनका ही काम करता हूँ ,मैं तो उनका नौकर हूँ। वही मुझे खाना खिलाते हैं और वही मुझे यहाँ पर रखते हैं। मैं बस उनके लिए बाँसुरी बजाता हूँ ,उनका काम करता हूँ।

मैं -वीणा अत्यंत प्राचीन वाद्य हैं ,इसे फिर से कैसे प्रसारित किया जाये ?

पंडित हरिप्रसाद चौरासियां जी – पहले वाणी- वीणा – वेणु यही तीन था। अब वीणा दिखाई नहीं दे रही ज्यादा। बहुत से वाद्य जैसे सुरबहार – इसराज आदि अब उतने दिखाई नहीं पड़ते। वाणी यानि गायन अभी भी हैं ,वेणु जैसा मैंने कहा कृष्ण की कृपा से बहुत प्रसारित हो गया। दक्षिण भारत में भी इतने वीणा वादक नहीं हैं। लेकिन मुझे लगता हैं ज्यादा से ज्यादा लोगो ने इसे सीखना चाहिए ,लोग सीखेंगे तो जरूर प्रसारित होगा। उस वाद्य में इतनी ताकत हैं, बहुत सुन्दर वाद्य हैं। इसे लोगो ने जरूर सीखना चाहिए।
मैं विद्यार्थी हूँ ,अभी भी अपने गुरु के पास सिखने जाता हूँ। सिखने वाले सभी लोगो को बहुत सुनना पड़ेगा, बिना सुने संगीत नहीं आ सकता। लोगो को इन सभी वाद्यों को बहुत सुनना होगा ,सीखना होगा ,समझना होगा तो कोई भी वाद्य फैलेगा और जरूर फैलेगा।

मैं – संगीत चिकित्सा का माध्यम हैं ,संगीत से चिकित्सा मिलती हैं। वीणा वेणु आर्ट फाउंडेशन के माध्यम से हम संगीत चिकित्सा को बढ़ावा देने का भी काम कर रहे हैं। पर लोग कहते हैं इस राग से ये ठीक होता हैं ,उस राग से वो ठीक होता हैं ,मैं मानती हूँ कि यह बहुत जरुरी हैं की आप जैसे गुणीजनों का मार्गदर्शन सभी को इस बारे में मिले ,मुझे एक राग से सरदर्द दूसरे से पेटदर्द ये बात कुछ जचती नहीं। मुझे लगता हैं लोगो तक सही बात पहुँचाना बहुत जरुरी हैं। मैं आपका विचार जानना चाहूंगी।

पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जी – इसके बारे में विदेशों में रिसर्च चल रहा हैं। हर पेशेंट् को पूछा जाता हैं, अलग अलग संगीत सुनकर की उसे कैसा लग रहा हैं ,ऐसे बहुत से एक्सपेरिमेंटस वहां हो रहे हैं। लेकिन मैंने जो अनुभव किया हैं वो यह हैं की अगर जीवन में संगीत रहा या सुनने वाले रहे तो मुझे नहीं लगता उनके जीवन में उन्हें कोई शिकायत होनी चाहिए। अब अगर किसी की आँख नहीं हैं या पैर नहीं हैं, ईश्वर ने दिया ही नहीं तो वह तो संगीत सुनकर नहीं आ सकता लेकिन अपने मन को खुश रखना, ये जो बहुत बड़ी बात हैं ये ताकत संगीत में हैं। हम लोग बचपन में देखते थे की बहुत लड़ाई झगड़ा हो रहा हैं घर में ,लेकिन अगर कोई रिकॉर्डिंग लगा दो तो थोड़ी देर में थोड़ा सा सुनके आप ही आप सब शांत हो जाते थे और अपना -अपना काम करने लगते थे। ये मैंने देखा हैं और उसीसे मुझे महसूस हुआ उस समय,कि संगीत में कोई ताकत हैं। संगीत चिकित्सा का काम मैं भी करना चाहूंगा ,मैं भी ऐसे काम में शामिल होना चाहूंगा। अगर मेरी बांसुरी सुनकर किसी की कोई बीमारी कम होती हैं या ठीक होती हैं तो मैं इसे जरूर करना चाहूंगा। क्योंकि मैं मानता हूँ की संगीत से ज्यादा ताकतवर कोई विषय नहीं।
हाँ पर इसमें राजनीति जरूर आएगी ,देखना पड़ेगा डॉक्टर अनुमति देता हैं या नहीं ,आखिर उसकी भी रोजी रोटी हैं। (हल्की सी हंसी के साथ )

मैं – वीणा वेणु आर्ट फॉउण्डेशन मैं हम लोग जहाँ शास्त्रीय संगीत की शुद्धता ,उसीकी परंपरागतता ,उसीकी सत्यता को संभाल कर विद्यार्थियों को सिखाने का प्रयत्न करते हैं वही हम कंटेम्पटरी, बॉलीवुड और फ्यूज़न को भी सही रूप से सिखाने का प्रयास कर रहे हैं,आजकल जो फिल्म संगीत चल रहा हैं उसमे से बहुत सा सुना नहीं जाता ,पर आपने तो फिल्म संगीत के क्षेत्र में बहुत काम किया हैं ,आपके युग का और आपने रचा फिल्म संगीत बहुत मधुर था ,मैं आपसे फिल्म संगीत ,फ्यूज़न आदि के विषय में आपके विचार जानना चाहूंगी।

पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जी – देखिये अब हम पहले के ज़माने में शुद्ध देसी घी खाया करते थे ,फिर वनस्पति घी का जमाना आ गया ,पहले तो बहुत प्रचलित हुआ लेकिन फिर बाद में सबको समझ आया की नहीं शुद्ध देसी घी ही ज्यादा सही हैं ,यही बात फिल्म संगीत तब और अब को लेकर हैं। ये जो नियति का चक्र हैं आज अँधेरा कल उजियारा यह तो चलता ही रहेगा। फिल्म संगीत की बात करे तो बहुत कुछ निर्भर करता हैं की उस फिल्म की मांग क्या हैं ,उस कहानी को क्या चाहिए ,संवाद कैसे हैं ,संवादों के अनुरूप संगीत को कैसे रखना हैं। जिस समय गाना फिल्म में बजाना हैं वो कौनसा समय हैं ,सुबह हैं -दिन हैं या शाम हैं। हमें फिल्म, करैक्टर ,संवाद के हिसाब से जाना पड़ता हैं और हम उसीके हिसाब से संगीत बनाते हैं। मुझे लगता हैं अगर फिल्म में गाने की या किसी समय संगीत की आवश्यकता न हो तो वहां पर बैकग्राउंड में संगीत या कोई गाना नहीं डालना चाहिए। मुझे अगर कोई फिल्ममेकर कहे की यहाँ भी संगीत दिया जाये तो मैं तो कहूंगा की भाई फिर मेरी क्या जरुरत हैं ,आप ही कर लो ! तो सबसे आवश्यक हैं कि उस कथा की ,उस फिल्म की आवश्यकता को समझा जाये ,उसमें इन्वॉल्व होकर संगीत बनाया जाये तो संगीत बहुत अच्छा बनेगा ,फिल्म के अनुरूप बनेगा। गांव के सीन में शहर के वाद्य या वेस्टर्न वाद्य नहीं बजाये जा सकते ,या दुःख भरे सीन के समय ख़ुशी के वाद्य या राग या धुन नहीं बजायी जा सकती ,यह समझना बहुत आवयश्क हैं। “लम्हे” का संगीत मैंने ही दिया था ,उसमे एक जगह ऐसा दृश्य था कि लड़की(हीरोइन) को बहुत क्रोध आ रहा हैं ,तो कुछ लोगो ने हमें कहा यहाँ पर बहुत लाउड म्यूजिक डाला जाये, पर मुझे लगा यहाँ हीरोइन क्रोध में भरकर नृत्य कर रही हैं यह दिखाया जाये,संगीत वाद्य की जगह नृत्य डाला जाये तो बहुत अच्छा लगेगा ,पहले तो साथ वाले लोगो को यह बात नहीं जँची लेकिन जब चित्रपट प्रदर्शित हुआ तो दर्शकों ने इसी नृत्य को सर पर उठा लिया। तो संगीत देते समय जो आपको सही लगे ,और जो मूवी की ,फिल्म की मांग हो उस हिसाब से दिया जाए तो वाकई बहुत अच्छा संगीत सामने आएगा। ऐसा मेरा विचार हैं। मुझे लगता हैं लोग क्या कहेंगे ये सोचकर संगीत नहीं किया जा सकता , किसी को अच्छा लगे तो ठीक , न लगे तो न लगे। आपका दिया हुआ संगीत आपको पहले अच्छा लगना बहुत जरुरी हैं , आपके दिल को सही लगना बहुत जरुरी हैं। जब फिल्म में दिया आपका संगीत आपको पसंद आएगा तो वो लोगो को भी पसंद आएगा ,अगर नहीं भी आये तो कोई बात नहीं। (मुस्कराहट )

मैं -आपका कोई मन्त्र दीजिये ,कोई सांगीतिक मन्त्र ?

पंडित हरिप्रसाद चौरासियां जी – मुस्कुराते हुए
मैंने कहा न कि मैं खुद भी एक विद्यार्थी हूँ मैं कोई भी मन्त्र नहीं दे सकता ,कुछ गलत हो जायेगा तो मैं परेशान होऊंगा ,मुझे पाप लगेगा। लेकिन हां यह कहूंगा कि मन में भक्ति और सच्चाई रखेंगे तो कोई भी काम पूरा होगा ,भक्ति – परिश्रम और सहनशीलता मुझे लगता हैं बहुत आवश्यक हैं . जैसे आप मुझसे रहेंगे वैसे मैं आपसे रहूँगा ऐसा अप्रोच अगर रखा जाये तो बहुत आनंद रहता हैं जीवन में।

मैं – वीणा वेणु आर्ट फाउंडेशन के लिए आपके दो शब्द

पंडित हरिप्रसाद चौरासियां जी – वीणा वेणु आर्ट फाउंडेशन के लिए मैं ह्रदय से शुभकामना करता हूँ, भगवान से प्रार्थना करता हूँ। हम लोग सब साथ में हैं ,हम एक परिवार हैं ,हम आपके साथ हैं और आपस में हम सब साथ हैं यह भावना रहेगी तो सब अच्छा ही रहेगा ,कुछ बुरा नहीं होगा। हम संगीत का जो काम कर रहे हैं वह भी एक पूजा ही हैं ,चाहे कृष्ण के लिए हो ,चाहे हम संगीत अपने माता पिता के लिए कर रहे हो या स्वयं के लिए या सभीके लिए। संगीत तो एक पूजा हैं इसमें कुछ गलत हो ही नहीं सकता ,कुछ गलत कभी होगा ही नहीं ,जो भी होगा अच्छा ही होगा ,क्योकि यह एक बहुत अच्छा काम हैं . वीणा वेणु आर्ट फाउंडेशन के लिए मेरी बहुत सी शुभकामनायें ,और विश्वास रखिये आपके काम में जो होगा बहुत अच्छा ही होगा ।

मैं – बहुत बहुत धन्यवाद पंडित जी
पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जी – मुस्कराहट के साथ धन्यवाद।

You have successfully subscribed to the newsletter

There was an error while trying to send your request. Please try again.

Veena Venu Art Foundation will use the information you provide on this form to be in touch with you and to provide updates and marketing.